दो घटना बताने जा रहा हूँ। पहली fb से अजीत सिंह की wall से copy है। पढ़िए -
#सत्य_घटना
पढ़ें सभी लोग अजीत सिंह की यह पोस्ट जो मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है...
'दीदी जल्दी करो लेट हो रहा है, 9.30 को ट्रेन है और बस 10 मिनट बचे हैं'....भांजी पीहू को लाड़ करते हुए मैंने किचन में काम करती हुई दीदी को आवाज दी..
दीदी जल्दी से आई, मुझे तिलक लगाया, और विदाई दी...और बाहर तक छोड़ने आई...
कटनी भुसावल पैसेंजर...सुबह 9.30 को भुसावल से ही शुरू होती है और दीदी के घर से रेलवे स्टेशन मुश्किल से 200 मीटर दूर है तो सोचा जल्दी स्टेशन जाकर कोई मतलब नही, पैसेंजर ट्रेन है...जगह तो मिल ही जायेगी ??
दौड़कर स्टेशन आकर टिकट ली और जल्दी में जो डब्बा सामने दिखा उसी में घुस गया...नजारे कुछ ठीक नही थे...ठस भरी हुई....4 घण्टे खड़े खड़े कैसे जाऊँगा????
जल्दी से उतरकर..आगे के डब्बे में घुसा पर यहाँ भी वही हाल..फ़िर उतरा, भागा, आगे के डब्बे में...यहाँ कुछ खाली जगह थी...पहले केबिन में मुस्लिम परिवार बैठा था...सब की सब महिलाएं...काले बुर्के में...मैं आगे बढ़ गया...यहाँ भी वही नजारे थे पर उनके साथ एक आदमी भी बैठा था...मैंने थोड़ा खसकने की गुजारिश की..जवाब मिला- 'हमारे 75 लड़के खड़े हैं' आवाज की टोन सुनकर मैं उनके इरादे समझ गया...
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-खड़े क्यों है?? जगह है तो बुलाकर बैठा लो...इतना कहकर मैंने कान में हेडफोन लगा लिए और कोने में खड़ा हो गया...
ट्रेन चलने के 2 मिनट के अंदर एक आदमी आया और उन सभी को चाय और बिस्कुट देकर गया...फिर 5 मिनट बाद एक आया केले देकर गया...खाकर कचरा वहीँ सीट के नीचे सरकाने का रिवाज तो हमारे देश के लोगों को विरासत में मिला है...खैर, ट्रेन अगले स्टॉप पर रूकी, वहाँ से 2 लोग मेरे डब्बे में चढ़े...एक आदमी एक औरत...आपस में मराठी में बात कर रहे थे...उस औरत ने भी बैठी हुई औरतों से वही कहा...उसे भी वही जवाब मिला शायद...बहस शुरू हो गयी...सारी बुर्के वाली मिलकर उसपर चिल्लाने लगी..
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उस मराठी महिला के साथ के आदमी ने उन्हें कुछ कहा ही था कि उनके साथ के आदमी ने चिल्लाकर उनके साथ के लड़कों को बुला लिया...8-10 लड़के आकर उन्हें धमकाने, गालियां देने लगे...पता चला कि आसपास की 3 बोगियों में वही लोग भरे हुए हैं....मौके की नजाकत और बहादुरी और बेवकूफी के बीच के फर्क को समझकर मैंने जैसे तैसे उन दोनों को उस चक्रव्यूह से बाहर निकाला...और उन दोनों मराठियों को बस एक लाइन कही- और दो कोंग्रेस को वोट!!!
फिर ट्रेन रूकी, अबकी बार 4 लोग चढ़े...सब के सब शांतिप्रिय धर्म के..जालीदार टोपी और बुर्के वाले...इनको जगह दे दी गयी.
[image_2]
.बैठा लिया गया...मैं उन दोनों मराठियों को देखकर मुस्कुरा दिया...और फिर से कान में हेडफोन लगा लिए...
कहने को घटना मामूली है पर मामूली है नही...ये मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है....बात सिर्फ ट्रेन में जगह को लेकर नही है...हमारे देश में भी यही हाल है...यहाँ तो कहने को 8-10 ही थे और इतना आतंक है...पूरे देश में तो 20 करोड़ के लWगभग हैं...और मानो या ना मानो पर ये 20 करोड़ हम 100 करोड़ पर भारी हैं क्योंकि वो 20 करोड़ सिर्फ मुसलमान हैं और हम दस करोड़ बाभन तो 20 करोड़ दलित.....5 करोड़ ठाकुर तो 25 करोड़ पिछड़ा.....कल को ये हमारे घर में घुसकर हमको यूँ ही भगा देंगे और हम कुछ नही कर पायेंगे...
योगी आदित्यनाथ ने सही कहा था कि जहाँ ये 30% से ऊपर हो जाते वहाँ दूसरों का जीना हराम हो जाता है...स्साले हमारा खाते हैं और हमसे ही नमक हरामी करते हैं.
#सत्य_घटना
पढ़ें सभी लोग अजीत सिंह की यह पोस्ट जो मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है...
'दीदी जल्दी करो लेट हो रहा है, 9.30 को ट्रेन है और बस 10 मिनट बचे हैं'....भांजी पीहू को लाड़ करते हुए मैंने किचन में काम करती हुई दीदी को आवाज दी..
दीदी जल्दी से आई, मुझे तिलक लगाया, और विदाई दी...और बाहर तक छोड़ने आई...
कटनी भुसावल पैसेंजर...सुबह 9.30 को भुसावल से ही शुरू होती है और दीदी के घर से रेलवे स्टेशन मुश्किल से 200 मीटर दूर है तो सोचा जल्दी स्टेशन जाकर कोई मतलब नही, पैसेंजर ट्रेन है...जगह तो मिल ही जायेगी ??
दौड़कर स्टेशन आकर टिकट ली और जल्दी में जो डब्बा सामने दिखा उसी में घुस गया...नजारे कुछ ठीक नही थे...ठस भरी हुई....4 घण्टे खड़े खड़े कैसे जाऊँगा????
जल्दी से उतरकर..आगे के डब्बे में घुसा पर यहाँ भी वही हाल..फ़िर उतरा, भागा, आगे के डब्बे में...यहाँ कुछ खाली जगह थी...पहले केबिन में मुस्लिम परिवार बैठा था...सब की सब महिलाएं...काले बुर्के में...मैं आगे बढ़ गया...यहाँ भी वही नजारे थे पर उनके साथ एक आदमी भी बैठा था...मैंने थोड़ा खसकने की गुजारिश की..जवाब मिला- 'हमारे 75 लड़के खड़े हैं' आवाज की टोन सुनकर मैं उनके इरादे समझ गया...
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-खड़े क्यों है?? जगह है तो बुलाकर बैठा लो...इतना कहकर मैंने कान में हेडफोन लगा लिए और कोने में खड़ा हो गया...
ट्रेन चलने के 2 मिनट के अंदर एक आदमी आया और उन सभी को चाय और बिस्कुट देकर गया...फिर 5 मिनट बाद एक आया केले देकर गया...खाकर कचरा वहीँ सीट के नीचे सरकाने का रिवाज तो हमारे देश के लोगों को विरासत में मिला है...खैर, ट्रेन अगले स्टॉप पर रूकी, वहाँ से 2 लोग मेरे डब्बे में चढ़े...एक आदमी एक औरत...आपस में मराठी में बात कर रहे थे...उस औरत ने भी बैठी हुई औरतों से वही कहा...उसे भी वही जवाब मिला शायद...बहस शुरू हो गयी...सारी बुर्के वाली मिलकर उसपर चिल्लाने लगी..
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उस मराठी महिला के साथ के आदमी ने उन्हें कुछ कहा ही था कि उनके साथ के आदमी ने चिल्लाकर उनके साथ के लड़कों को बुला लिया...8-10 लड़के आकर उन्हें धमकाने, गालियां देने लगे...पता चला कि आसपास की 3 बोगियों में वही लोग भरे हुए हैं....मौके की नजाकत और बहादुरी और बेवकूफी के बीच के फर्क को समझकर मैंने जैसे तैसे उन दोनों को उस चक्रव्यूह से बाहर निकाला...और उन दोनों मराठियों को बस एक लाइन कही- और दो कोंग्रेस को वोट!!!
फिर ट्रेन रूकी, अबकी बार 4 लोग चढ़े...सब के सब शांतिप्रिय धर्म के..जालीदार टोपी और बुर्के वाले...इनको जगह दे दी गयी.
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.बैठा लिया गया...मैं उन दोनों मराठियों को देखकर मुस्कुरा दिया...और फिर से कान में हेडफोन लगा लिए...
कहने को घटना मामूली है पर मामूली है नही...ये मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है....बात सिर्फ ट्रेन में जगह को लेकर नही है...हमारे देश में भी यही हाल है...यहाँ तो कहने को 8-10 ही थे और इतना आतंक है...पूरे देश में तो 20 करोड़ के लWगभग हैं...और मानो या ना मानो पर ये 20 करोड़ हम 100 करोड़ पर भारी हैं क्योंकि वो 20 करोड़ सिर्फ मुसलमान हैं और हम दस करोड़ बाभन तो 20 करोड़ दलित.....5 करोड़ ठाकुर तो 25 करोड़ पिछड़ा.....कल को ये हमारे घर में घुसकर हमको यूँ ही भगा देंगे और हम कुछ नही कर पायेंगे...
योगी आदित्यनाथ ने सही कहा था कि जहाँ ये 30% से ऊपर हो जाते वहाँ दूसरों का जीना हराम हो जाता है...स्साले हमारा खाते हैं और हमसे ही नमक हरामी करते हैं.
दो घटना बताने जा रहा हूँ। पहली fb से अजीत सिंह की wall से copy है। पढ़िए -
#सत्य_घटना
पढ़ें सभी लोग अजीत सिंह की यह पोस्ट जो मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है...
'दीदी जल्दी करो लेट हो रहा है, 9.30 को ट्रेन है और बस 10 मिनट बचे हैं'....भांजी पीहू को लाड़ करते हुए मैंने किचन में काम करती हुई दीदी को आवाज दी..
दीदी जल्दी से आई, मुझे तिलक लगाया, और विदाई दी...और बाहर तक छोड़ने आई...
कटनी भुसावल पैसेंजर...सुबह 9.30 को भुसावल से ही शुरू होती है और दीदी के घर से रेलवे स्टेशन मुश्किल से 200 मीटर दूर है तो सोचा जल्दी स्टेशन जाकर कोई मतलब नही, पैसेंजर ट्रेन है...जगह तो मिल ही जायेगी ??
दौड़कर स्टेशन आकर टिकट ली और जल्दी में जो डब्बा सामने दिखा उसी में घुस गया...नजारे कुछ ठीक नही थे...ठस भरी हुई....4 घण्टे खड़े खड़े कैसे जाऊँगा????
जल्दी से उतरकर..आगे के डब्बे में घुसा पर यहाँ भी वही हाल..फ़िर उतरा, भागा, आगे के डब्बे में...यहाँ कुछ खाली जगह थी...पहले केबिन में मुस्लिम परिवार बैठा था...सब की सब महिलाएं...काले बुर्के में...मैं आगे बढ़ गया...यहाँ भी वही नजारे थे पर उनके साथ एक आदमी भी बैठा था...मैंने थोड़ा खसकने की गुजारिश की..जवाब मिला- 'हमारे 75 लड़के खड़े हैं' आवाज की टोन सुनकर मैं उनके इरादे समझ गया...
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-खड़े क्यों है?? जगह है तो बुलाकर बैठा लो...इतना कहकर मैंने कान में हेडफोन लगा लिए और कोने में खड़ा हो गया...
ट्रेन चलने के 2 मिनट के अंदर एक आदमी आया और उन सभी को चाय और बिस्कुट देकर गया...फिर 5 मिनट बाद एक आया केले देकर गया...खाकर कचरा वहीँ सीट के नीचे सरकाने का रिवाज तो हमारे देश के लोगों को विरासत में मिला है...खैर, ट्रेन अगले स्टॉप पर रूकी, वहाँ से 2 लोग मेरे डब्बे में चढ़े...एक आदमी एक औरत...आपस में मराठी में बात कर रहे थे...उस औरत ने भी बैठी हुई औरतों से वही कहा...उसे भी वही जवाब मिला शायद...बहस शुरू हो गयी...सारी बुर्के वाली मिलकर उसपर चिल्लाने लगी..
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उस मराठी महिला के साथ के आदमी ने उन्हें कुछ कहा ही था कि उनके साथ के आदमी ने चिल्लाकर उनके साथ के लड़कों को बुला लिया...8-10 लड़के आकर उन्हें धमकाने, गालियां देने लगे...पता चला कि आसपास की 3 बोगियों में वही लोग भरे हुए हैं....मौके की नजाकत और बहादुरी और बेवकूफी के बीच के फर्क को समझकर मैंने जैसे तैसे उन दोनों को उस चक्रव्यूह से बाहर निकाला...और उन दोनों मराठियों को बस एक लाइन कही- और दो कोंग्रेस को वोट!!!
फिर ट्रेन रूकी, अबकी बार 4 लोग चढ़े...सब के सब शांतिप्रिय धर्म के..जालीदार टोपी और बुर्के वाले...इनको जगह दे दी गयी.
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.बैठा लिया गया...मैं उन दोनों मराठियों को देखकर मुस्कुरा दिया...और फिर से कान में हेडफोन लगा लिए...
कहने को घटना मामूली है पर मामूली है नही...ये मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है....बात सिर्फ ट्रेन में जगह को लेकर नही है...हमारे देश में भी यही हाल है...यहाँ तो कहने को 8-10 ही थे और इतना आतंक है...पूरे देश में तो 20 करोड़ के लWगभग हैं...और मानो या ना मानो पर ये 20 करोड़ हम 100 करोड़ पर भारी हैं क्योंकि वो 20 करोड़ सिर्फ मुसलमान हैं और हम दस करोड़ बाभन तो 20 करोड़ दलित.....5 करोड़ ठाकुर तो 25 करोड़ पिछड़ा.....कल को ये हमारे घर में घुसकर हमको यूँ ही भगा देंगे और हम कुछ नही कर पायेंगे...
योगी आदित्यनाथ ने सही कहा था कि जहाँ ये 30% से ऊपर हो जाते वहाँ दूसरों का जीना हराम हो जाता है...स्साले हमारा खाते हैं और हमसे ही नमक हरामी करते हैं.
#सत्य_घटना
पढ़ें सभी लोग अजीत सिंह की यह पोस्ट जो मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है...
'दीदी जल्दी करो लेट हो रहा है, 9.30 को ट्रेन है और बस 10 मिनट बचे हैं'....भांजी पीहू को लाड़ करते हुए मैंने किचन में काम करती हुई दीदी को आवाज दी..
दीदी जल्दी से आई, मुझे तिलक लगाया, और विदाई दी...और बाहर तक छोड़ने आई...
कटनी भुसावल पैसेंजर...सुबह 9.30 को भुसावल से ही शुरू होती है और दीदी के घर से रेलवे स्टेशन मुश्किल से 200 मीटर दूर है तो सोचा जल्दी स्टेशन जाकर कोई मतलब नही, पैसेंजर ट्रेन है...जगह तो मिल ही जायेगी ??
दौड़कर स्टेशन आकर टिकट ली और जल्दी में जो डब्बा सामने दिखा उसी में घुस गया...नजारे कुछ ठीक नही थे...ठस भरी हुई....4 घण्टे खड़े खड़े कैसे जाऊँगा????
जल्दी से उतरकर..आगे के डब्बे में घुसा पर यहाँ भी वही हाल..फ़िर उतरा, भागा, आगे के डब्बे में...यहाँ कुछ खाली जगह थी...पहले केबिन में मुस्लिम परिवार बैठा था...सब की सब महिलाएं...काले बुर्के में...मैं आगे बढ़ गया...यहाँ भी वही नजारे थे पर उनके साथ एक आदमी भी बैठा था...मैंने थोड़ा खसकने की गुजारिश की..जवाब मिला- 'हमारे 75 लड़के खड़े हैं' आवाज की टोन सुनकर मैं उनके इरादे समझ गया...
[image_0]
-खड़े क्यों है?? जगह है तो बुलाकर बैठा लो...इतना कहकर मैंने कान में हेडफोन लगा लिए और कोने में खड़ा हो गया...
ट्रेन चलने के 2 मिनट के अंदर एक आदमी आया और उन सभी को चाय और बिस्कुट देकर गया...फिर 5 मिनट बाद एक आया केले देकर गया...खाकर कचरा वहीँ सीट के नीचे सरकाने का रिवाज तो हमारे देश के लोगों को विरासत में मिला है...खैर, ट्रेन अगले स्टॉप पर रूकी, वहाँ से 2 लोग मेरे डब्बे में चढ़े...एक आदमी एक औरत...आपस में मराठी में बात कर रहे थे...उस औरत ने भी बैठी हुई औरतों से वही कहा...उसे भी वही जवाब मिला शायद...बहस शुरू हो गयी...सारी बुर्के वाली मिलकर उसपर चिल्लाने लगी..
[image_1]
उस मराठी महिला के साथ के आदमी ने उन्हें कुछ कहा ही था कि उनके साथ के आदमी ने चिल्लाकर उनके साथ के लड़कों को बुला लिया...8-10 लड़के आकर उन्हें धमकाने, गालियां देने लगे...पता चला कि आसपास की 3 बोगियों में वही लोग भरे हुए हैं....मौके की नजाकत और बहादुरी और बेवकूफी के बीच के फर्क को समझकर मैंने जैसे तैसे उन दोनों को उस चक्रव्यूह से बाहर निकाला...और उन दोनों मराठियों को बस एक लाइन कही- और दो कोंग्रेस को वोट!!!
फिर ट्रेन रूकी, अबकी बार 4 लोग चढ़े...सब के सब शांतिप्रिय धर्म के..जालीदार टोपी और बुर्के वाले...इनको जगह दे दी गयी.
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.बैठा लिया गया...मैं उन दोनों मराठियों को देखकर मुस्कुरा दिया...और फिर से कान में हेडफोन लगा लिए...
कहने को घटना मामूली है पर मामूली है नही...ये मुस्लिमों की हिन्दुओं के प्रति सोच का प्रदर्शन करती है....बात सिर्फ ट्रेन में जगह को लेकर नही है...हमारे देश में भी यही हाल है...यहाँ तो कहने को 8-10 ही थे और इतना आतंक है...पूरे देश में तो 20 करोड़ के लWगभग हैं...और मानो या ना मानो पर ये 20 करोड़ हम 100 करोड़ पर भारी हैं क्योंकि वो 20 करोड़ सिर्फ मुसलमान हैं और हम दस करोड़ बाभन तो 20 करोड़ दलित.....5 करोड़ ठाकुर तो 25 करोड़ पिछड़ा.....कल को ये हमारे घर में घुसकर हमको यूँ ही भगा देंगे और हम कुछ नही कर पायेंगे...
योगी आदित्यनाथ ने सही कहा था कि जहाँ ये 30% से ऊपर हो जाते वहाँ दूसरों का जीना हराम हो जाता है...स्साले हमारा खाते हैं और हमसे ही नमक हरामी करते हैं.